भारत के शैक्षणिक व्यवस्था पर पाश्चात्य संस्कृति के द्वारा जमायें गये आधिपत्य को कम करने पर वर्तमान सरकार यदि लगातार प्रभावी ढ़ंग से मुखर होकर काम कर रही है तो इसमें वर्षों से चले आ रहे आन्दोलन को मूल माना जा सकता है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास जिसकी स्थापना 24 मई 2007 को ऐसे ही उद्देश्य कि पूर्ति के लिए किया गया, ने हाल के वर्षों में अपनी प्रासंगिकता को व्यापकता प्रदान किया है। शिक्षा बचाओ आन्दोलन में किए गए संघर्ष को संस्थागत स्वरुप के तौर पर मूर्त रूप देने की कोशिश जो 2004 से चली थी उसने वर्तमान दौर में इस देश की सांस्कृतिक और शैक्षणिक पहचान को पुन: जीवित करने का प्रयास किया है। गुरुकुल परम्परा से संपुष्ट इस देश के शैक्षणिक जगत में गुलामी के दौर में मिशनरी स्कूलों ने ले ली उसके साथ ही उच्च शिक्षा में व्याप्त वामपंथी विचारधारा को भारतीयता के ऊपर थोपने की शिक्षा नीति के खिलाफ चले लम्बे संघर्ष के स्वरुप आज 34 वर्षों बाद भारत को भारतीयता से संपुष्ट शिक्षा व्यवस्था मिल सकी है। इस आन्दोलन में सबसे बड़ा योगदान इस संस्था का रहा है जिसने जमीनी स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों आन्दोलनों और बौद्धिक विमर्श से व्यवस्था परिवर्तन की राह को आसान कर दिया। न्यास ने देश की शिक्षा को नया विकल्प देने के अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य को निर्धारित करते हुए शिक्षा के मूलभूत व आधारभूत विषयों पर कार्य प्रारम्भ किया जो आज व्यापक स्तर पर दृष्टिगोचर है।
शिक्षा संकृति उत्थान न्यास ने तकनीकी शिक्षा से लगायत प्रारम्भिक शिक्षा में भारतीयता की पुट डालने को भागीरथी प्रयास किया है उसी के फलस्वरूप यह देश आज अपनी नई शिक्षा नीति पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है। वर्तमान केंद्र सरकार ने सामाजिक चेतना को कार्यरत ऐसी राष्ट्रव्यापी बौद्धिक संस्थाओं से मिले लाभकारी सुझावों को आने वाली पीढ़ियों को सांस्कृतिक रूप से उन्नत बनाने में इस्तेमाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। देश के शैक्षणिक उन्नयन को लगातार कार्यक्रम चले लेकिन उनमें से अंग्रेजियत की बू नहीं निकल पा रही थी जिसे ख़त्म करने को यह अब तक का सबसे सार्थक और ठोस परिणाम रहा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के आत्म निर्भर भारत के सपने को पूरा करने के उद्देश्य से शैक्षणिक संस्थाओं की भूमिका को बखूबी समझा और यह बताया कि शैक्षणिक संस्थान केवल डिग्री देने के लिए नहीं संचालित हैं जबकि वें शिक्षा में कौशल विकास, स्टार्ट अप और अनुसन्धान के साथ विद्यार्थियों के सामुदायिक जुड़ाव, आर्थिक विकास से देश को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका के निर्वहन के लिए हैं। शिक्षा नीति-2020 ने पुराने ढ़र्रे को बदलते हुए शिक्षाविदों और विद्यार्थियों को राष्ट्रीय हित में केन्द्रित नवोन्मेषी, लोकतान्त्रिक एवं विद्यार्थी केन्द्रित राष्ट्रीय शिक्षा नीति जारी करते हुए समावेशी सोच को मजबूती से स्थापित करने का प्रयास किया है। इस नीति के निर्माण के बाद भी इसको धरातल पर लागू कराने के लिए व्यापक विमर्श की आवश्यकता है जिससे शिक्षा जगत से जुड़े सभी लोग इस नीति को भली-भांति समझ सकें ताकि इसका सही क्रियान्वयन हो सकें और यही पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने देश भर में शिक्षाविदों के समर्थन से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके अपनी उपयोगिता को और जनसरोकारी बनाया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास प्रासंगिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने से सम्बंधित महत्वपूर्ण मुद्दों व विषयों पर विचार विमर्श एवं समाधान प्रदान करने के लिए विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक, उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा के विद्यार्थियों, अध्यापकों, एवं शिक्षाविदों के लिए ज्ञानोत्सव का भी आयोजन करता है। ऐसे आयोजनों से शैक्षणिक गतिविधियों के लाभान्वितों को यह एहसास होता है कि उनकी शिक्षा केवल स्वयं के ज्ञानोदय के लिए नहीं है बल्कि देश के बेहतरीन संसाधनों के इस्तेमाल के फलस्वरूप हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है जिसको लेकर हमने अपनी शैक्षणिक पढाई पढ़ी है।
वर्तमान दौर में जब भी ऐतिहासिक बातचीत होती है और उसके लिए संदर्भ चुनने की कोशिश होती है तो प्राय: हम देखते हैं कि देश के गौरवशाली इतिहास का लिखित दस्तावेज बेहद अपुष्ट और कम पाया जाता है जबकि हमारे भारतीय ज्ञान परम्परा के अपने सोपान और उच्च प्रतिमान पूर्व स्थापित दन्त कथाओं के माध्यम से पता चलता है। भारतीयता के गौरवशाली इतिहास पर वामपंथी विचारकों एवं पूर्ववर्ती सरकारों ने जिस प्रकार आवरण चढ़ा कर केवल गुलामी के दास्ताँ को आगे बढाने का काम किया उसे ही समाप्त कर राष्ट्रीय गौरव और इस देश की अस्मिता को पुन: स्थापित करने में न्यास के समर्पित स्वयंसेवकों ने अपने कर्तव्यों का पालन किया है। इनके अथक मेहनत और प्रयासों ने आज देश में अपनी गौरवशाली इतिहास को जानने और चर्चा में महत्वपूर्ण बनाकर जन-जन की प्रतिभागिता और सहभागिता को स्थापित कर दिया है। आज आम भारतीय भी जब अपने देश के छिपे हुए इतिहास और अपनी मातृभाषा में तथ्यात्मक बातें करता है तो न्यास के मौन बलिदानियों की मेहनत अपना बौद्धिक और सामाजिक प्रासंगिकता का शोर खुद-ब-खुद मचा देती है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी जो देश के ख्यातिलब्ध शिक्षाविद् हैं, ने भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम को दुरुस्त करने के क्षेत्र में कार्यों को गति प्रदान करने के उद्देश्य से देश में बौद्धिक संसर्ग, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं के माध्यम से एक बौद्धिक क्रांति लाने का अथक प्रयास किया। आज भी जब भारतीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को दोयम स्तर से देखा जाता था तो उन्हें सम्मानित तौर पर शैक्षणिक जगत में स्थापित करने में शिक्षाविद् अतुल कोठारी की भूमिका महत्वपूर्ण साबित होती है। देश में विधि एवं न्याय पाठ्यक्रमों के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं में कार्य हो, इसके लिए व्यक्तियों और संस्थाओं को जोड़कर सभी के सहयोग से कार्य कराने के उद्देश्य से शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की भूमिका ने इस क्षेत्र के व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में कल्याणकारी नीति अपनाते हुए बेहद जरूरी काम क्रियान्वित किया है।
देश में शैक्षणिक उन्नयन के संक्रमण काल में कई विवादास्पद पाठ्यक्रमों को पाठ्य पुस्तकों से हटाकर उनके जगह पर भारतीय गौरवशाली इतिहास पर अनुसन्धान के पश्चात् नए विषय जोड़े गये। देश के विद्यार्थियों और शिक्षकों के सर्वांगीण विकास हेतु और नवोन्मेषी गतिविधियों के संचालन में भी न्यास ने अपनी महती भूमिका को राष्ट्रीय फलक पर अपने कार्यों के माध्यम से स्थापित किया है। आज देश के लगभग सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों सहित उच्च संस्थानों में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में इतनी तेजी दिखी है तो उसके पीछे ऐसे ही विचारोत्तेजक संस्था के स्वयंसेवकों की मेहनत का ही परिणाम है जिन्होंने इस नीति को जनसरोकार और जनचेतना से जोड़ दिया।